बाल विकास के मामले में भारत अब भी दूसरे देशों के मुकाबले काफी पिछड़ा हुआ है। सरकारी योजनाओं पर करोड़ों खर्च के बावजूद देश में कुपोषण की समस्या गंभीर बनी हुई है। पूरी दुनिया के बच्चों के स्वास्थ्य, विकास, सुरक्षा और अधिकारों पर काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने अब भारत से कुपोषण की समस्या के खात्मे के लिए अलख जगाई है। इसी सिलसिले में पिछले दिनों फरीदाबाद में यूनिसेफ की ओर से तीन दिवसीय वर्कशॉप आयोजित हुई। उस दौरान विशेष तौर पर भारत भेजे गए यूनिसेफ के कंसल्टेंट रॉयस्टन मार्टिन से रमेश ठाकुर ने बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश:
• भारत में कुपोषण की समस्या कितनी गंभीर है? इस पर आप की राय क्या है?
यूनिसेफ की रिपोर्ट इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट रूप में कहती है कि हालात बेहद गंभीर हैं। भारत में कुपोषित बच्चों की संख्या घटने की जगह बढ़ रही है। आदिवासी समुदाय व ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण की स्थिति चिंताजनक है। हिंदुस्तान में जन्म से पांच साल तक के बच्चों को वे सभी जरूरी टीके मुहैया नहीं कराए जाते जिनसे विभिन्न बीमारियों को रोका जाता है। यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपने बच्चों को पोषण मुहैया कराने के मामले में बांग्लादेश और कांगो से भी पीछे है। इस संबंध में स्वास्थ्य मंत्रालय को गंभीर होने की आवश्यकता है। टीकाकरण को लेकर भारत सरकार को आंगनबाड़ी या आशा वर्करों पर ही पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहिए। पोलियो की तरह कुपोषण के लिए भी जनजागरण की जरूरत है।
• आपकी नजर में हिंदुस्तान में कुपोषण की मुख्य वजह क्या है?
कुपोषण और भुखमरी गरीबी से जुड़ी हुई चीजें है। विश्व स्तर पर लाख प्रयासों के बावजूद गरीबी, कुपोषण और भुखमरी में कमी नहीं आई। यह रोग लगातार बढ़ता ही गया। इसका एक कारण कारण अन्न की बर्बादी भी है। गरीबी और भूख की समस्या का निदान खोजने और जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया तो जाता है लेकिन सिर्फ कागजों में। यह बहुत जरूरी है कि हम सब भोजन की अहमियत समझें और इसे किसी भी सूरत में बर्बाद न करें। आधी दुनिया आज भी अपनी मूलभूत आवश्यकताएं पूरी करने की चुनौती से जूझ रही है और काफी हद तक भुखमरी की शिकार है। वैश्विक समाज के संतुलित विकास के लिए यह आवश्यक है कि हर व्यक्ति को संतुलित भोजन की इतनी मात्रा मिले कि वह कुपोषण के दायरे से बाहर निकल कर एक स्वस्थ जीवन जी सके। इसके लिए जरूरी है कि विश्व में खाद्यान्न का उत्पादन भी पर्याप्त मात्रा में हो।
• टीकाकरण जागरूकता को लेकर यूनिसेफ की भारत में क्या योजना है?
यूनिसेफ पिछले 70 वर्षों से भारत में यहां की सरकारों के साथ मिलकर काम कर रहा है। यहां के बच्चे अपने अधिकारों से पूरी तरह से वंचित हैं। जन्म से पहले और जन्म के बाद बच्चों को मिलने वाले टीके उनका मौलिक अधिकार हैं। सभी बच्चों का टीकाकरण सही समय पर हो इसके लिए यूनिसेफ की ओर से भारत में जागरूकता वर्कशॉप का आयोजन किया जा रहा है। यूनिसेफ की नई रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल से कम की उम्र में दम तोड़ देने वाले सबसे ज्याादा बच्चे भारत के हैं। हमारे शरीर में टीके की महत्ता का अंदाजा कम होती शिशु मृत्यु दर से लगाया जा सकता है। टीकाकरण को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए हमने फरीदाबाद में एक वर्कशॉप का आयोजन किया है जिसमें कुछ लोगों को प्रशिक्षित कर उन्हें टीकाकरण की जिम्मेदारी सौंपी है। भारत में यूनिसेफ अपने स्तर पर टीकाकरण कराना चाहता है।
• मगर टीकाकरण को ही लेकर भारत सरकार ने भी इंद्रधनुष योजना की शुरुआत की है...
25 दिसंबर, 2014 को शुरू किए गए मिशन इंद्रधनुष में 2020 तक 90 फीसद बच्चों को टीकाकरण के दायरे में लाने का लक्ष्य है। निःसंदेह योजना बहुत अच्छी है। लेकिन क्या इस पर ठीक से अमल हो पा रहा है/ शायद नहीं। स्वास्थ्य मंत्रालय से हमने इस बारे में जानकारी मांगी, पर नहीं दी गई। भारत में बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के लिए यूनिसेफ ने बड़ी योजना बनाई है। हमारी टीम ने पिछले साल तक टीके की 2.5 अरब खुराक खरीद कर करीब सौ देशों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों तक पहुंचाया है। इन प्रयासों की बदौलत यूनिसेफ दुनिया में बच्चों के लिए टीकों का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है।
• लेकिन भारत सरकार देश में बच्चों की स्थिति पर यूनिसेफ की रिपोर्ट से ज्यादा इत्तफाक नहीं रखती। सरकार का मानना है कि भारत में स्थिति नियंत्रण में है। क्या कहेंगे?
सरकारी अमला इस तल्ख हकीकत को स्वीकार करके उसका हल खोजने के बजाय आंकड़ों की बाजीगरी से जमीनी हकीकत को झुठलाने में ज्यादा रुचि लेता है। बावजूद इसके, यूनिसेफ किसी सरकार पर कोई आरोप नहीं लगा रहा। पूरे संसार में आज भी हर साल करीब 15 लाख बच्चों की मौत उन बीमारियों से होती है जिनकी रोकथाम करने वाले टीके बाजार में उपलब्ध हैं। भारत में भी ऐसी रिपोर्टे हैं कि टीका उपलब्ध होने के बावजूद बच्चे टीके से वंचित रहते हैं। टीकाकरण से डिप्थीरिया, खसरा, काली खांसी, निमोनिया, पोलियो, रोटावायरस दस्त, रूबेला और टिटनस जैसी लगभग 25 तरह की बीमारियों से बचा जा सकता है। भारत सरकार को थोड़ा गंभीर होने की जरूरत है।
(नवभारत टाइम्स संपादकीय पेज से साभार)
• भारत में कुपोषण की समस्या कितनी गंभीर है? इस पर आप की राय क्या है?
यूनिसेफ की रिपोर्ट इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट रूप में कहती है कि हालात बेहद गंभीर हैं। भारत में कुपोषित बच्चों की संख्या घटने की जगह बढ़ रही है। आदिवासी समुदाय व ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण की स्थिति चिंताजनक है। हिंदुस्तान में जन्म से पांच साल तक के बच्चों को वे सभी जरूरी टीके मुहैया नहीं कराए जाते जिनसे विभिन्न बीमारियों को रोका जाता है। यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपने बच्चों को पोषण मुहैया कराने के मामले में बांग्लादेश और कांगो से भी पीछे है। इस संबंध में स्वास्थ्य मंत्रालय को गंभीर होने की आवश्यकता है। टीकाकरण को लेकर भारत सरकार को आंगनबाड़ी या आशा वर्करों पर ही पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहिए। पोलियो की तरह कुपोषण के लिए भी जनजागरण की जरूरत है।
• आपकी नजर में हिंदुस्तान में कुपोषण की मुख्य वजह क्या है?
कुपोषण और भुखमरी गरीबी से जुड़ी हुई चीजें है। विश्व स्तर पर लाख प्रयासों के बावजूद गरीबी, कुपोषण और भुखमरी में कमी नहीं आई। यह रोग लगातार बढ़ता ही गया। इसका एक कारण कारण अन्न की बर्बादी भी है। गरीबी और भूख की समस्या का निदान खोजने और जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया तो जाता है लेकिन सिर्फ कागजों में। यह बहुत जरूरी है कि हम सब भोजन की अहमियत समझें और इसे किसी भी सूरत में बर्बाद न करें। आधी दुनिया आज भी अपनी मूलभूत आवश्यकताएं पूरी करने की चुनौती से जूझ रही है और काफी हद तक भुखमरी की शिकार है। वैश्विक समाज के संतुलित विकास के लिए यह आवश्यक है कि हर व्यक्ति को संतुलित भोजन की इतनी मात्रा मिले कि वह कुपोषण के दायरे से बाहर निकल कर एक स्वस्थ जीवन जी सके। इसके लिए जरूरी है कि विश्व में खाद्यान्न का उत्पादन भी पर्याप्त मात्रा में हो।
• टीकाकरण जागरूकता को लेकर यूनिसेफ की भारत में क्या योजना है?
यूनिसेफ पिछले 70 वर्षों से भारत में यहां की सरकारों के साथ मिलकर काम कर रहा है। यहां के बच्चे अपने अधिकारों से पूरी तरह से वंचित हैं। जन्म से पहले और जन्म के बाद बच्चों को मिलने वाले टीके उनका मौलिक अधिकार हैं। सभी बच्चों का टीकाकरण सही समय पर हो इसके लिए यूनिसेफ की ओर से भारत में जागरूकता वर्कशॉप का आयोजन किया जा रहा है। यूनिसेफ की नई रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल से कम की उम्र में दम तोड़ देने वाले सबसे ज्याादा बच्चे भारत के हैं। हमारे शरीर में टीके की महत्ता का अंदाजा कम होती शिशु मृत्यु दर से लगाया जा सकता है। टीकाकरण को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए हमने फरीदाबाद में एक वर्कशॉप का आयोजन किया है जिसमें कुछ लोगों को प्रशिक्षित कर उन्हें टीकाकरण की जिम्मेदारी सौंपी है। भारत में यूनिसेफ अपने स्तर पर टीकाकरण कराना चाहता है।
• मगर टीकाकरण को ही लेकर भारत सरकार ने भी इंद्रधनुष योजना की शुरुआत की है...
25 दिसंबर, 2014 को शुरू किए गए मिशन इंद्रधनुष में 2020 तक 90 फीसद बच्चों को टीकाकरण के दायरे में लाने का लक्ष्य है। निःसंदेह योजना बहुत अच्छी है। लेकिन क्या इस पर ठीक से अमल हो पा रहा है/ शायद नहीं। स्वास्थ्य मंत्रालय से हमने इस बारे में जानकारी मांगी, पर नहीं दी गई। भारत में बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के लिए यूनिसेफ ने बड़ी योजना बनाई है। हमारी टीम ने पिछले साल तक टीके की 2.5 अरब खुराक खरीद कर करीब सौ देशों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों तक पहुंचाया है। इन प्रयासों की बदौलत यूनिसेफ दुनिया में बच्चों के लिए टीकों का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है।
• लेकिन भारत सरकार देश में बच्चों की स्थिति पर यूनिसेफ की रिपोर्ट से ज्यादा इत्तफाक नहीं रखती। सरकार का मानना है कि भारत में स्थिति नियंत्रण में है। क्या कहेंगे?
सरकारी अमला इस तल्ख हकीकत को स्वीकार करके उसका हल खोजने के बजाय आंकड़ों की बाजीगरी से जमीनी हकीकत को झुठलाने में ज्यादा रुचि लेता है। बावजूद इसके, यूनिसेफ किसी सरकार पर कोई आरोप नहीं लगा रहा। पूरे संसार में आज भी हर साल करीब 15 लाख बच्चों की मौत उन बीमारियों से होती है जिनकी रोकथाम करने वाले टीके बाजार में उपलब्ध हैं। भारत में भी ऐसी रिपोर्टे हैं कि टीका उपलब्ध होने के बावजूद बच्चे टीके से वंचित रहते हैं। टीकाकरण से डिप्थीरिया, खसरा, काली खांसी, निमोनिया, पोलियो, रोटावायरस दस्त, रूबेला और टिटनस जैसी लगभग 25 तरह की बीमारियों से बचा जा सकता है। भारत सरकार को थोड़ा गंभीर होने की जरूरत है।
(नवभारत टाइम्स संपादकीय पेज से साभार)