असगर वजाहत
शाह आलम कैम्प की रूहें
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शाह आलम कैम्प मे आधी रात के बाद एक औरत की घबराई बौखलाई रूह पंहुची जो अपने बच्चे को तलाश कर रही थी। उसका बच्चा न उस दुनिया मे था न वह कैम्प मे था। बच्चे की मां का कलेजा फटा जाता था। दूसरी औरतों की रूहें भी सी औरत के साथ बच्चे को तलाश करने लगीं। उन सबने मिलकर कैम्प छान मारा ....मोहल्ले गयी....घर धूं धूं करके जल रहे थे। चुंकि वे रूहें थीं इसलिये जलते मकानों के अन्दर घुस गयीं....कोना कोना छान मारा लेकिन बच्चा न मिला।
आख़िर सभी औरतों की रूहें दंगाइयों के पास गई। वे कल के लिए पैट्रोल बम बना रहे थे। बंदूकें साफ कर रहे थे। हथियार चमका रहे थे। बच्चे की मां ने उनसे अपने बच्चे के बारे मे पूछा तो वे हंसने लगे और बोले - अरे पगली औरत , जब दस दस , बीस बीस लोगों को एक साथ जलाया जाता है तो एक बच्चे का हिसाब कौन रखता है ? पड़ा होगा किसी राख के ढ़ेर मे। "
मां ने कहा -- नही, नही मैंने हर जगह देख लिया है....कही नही मिला । "
तब किसी दंगाई ने कहा--अरे ये उस बच्चे की मां तो नही जिसे हम त्रिशूल पर टांग आये हैं।
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8 comments:
अच्छी कल्पना की उड़ान है.
आप इसी प्रकार विषारोपण करते रहें, एक दिन जरूर जहर फैलेगा.
Wajahatji, aapki kahani ka sirf english translation hi pada tha. Hindi mein pad kar achcha laga. Baaki parts ke intezaar mein hoon. apkee blog aage zaroor padoonga.
आगे देखें क्या लिखते हैं!
संजय बेंगाणी जी ,
अगर ज़हर की बात करें तो सबसे ज़्यादा ज़हर आप जैसे संघ और विहिप के समर्थकों ने फैलाया है . और जो भी और जितना भी ज़हर फैलाया है , उसकी भरपाई आज तक नही हो पाई है . कहानी , क़िस्से या जो कुछ भी नया रचा जाता है , मेरे ख़्याल से आपको भी इतना तो अच्छी तरह से पता होगा कि उसका आधार यथार्थ ही रहता है , और आप भी इस यथार्थ से इनकार नही कर सकते कि गुजरात मे , " आपके गुजरात" मे मुसलमान मारे गये और ख़ूब मारे गये , आपके अंदर अगर दम है तो उन मौतों को फिर से ज़िंदा करके ले आइए , हम कुछ नही कहेंगे . लेकिन फ़ालतू की और बेकार सी बातें कहकर क़म से कम अपनी बेवकूफ़ी सब जगह मत दिख दिया कीजिए. वजाहत साहब के बारे मे कुछ भी कहने से पहले उनको समझ सकने की अक्ल तो अपने अंदर पैदा कीजिए
दुख दीन भाई(क्या आपके नाम को लेकर मैं सही हूं?) बेंगानी जी जैसे लोगों की(लगता है) एक मात्र यही काबीलियत है कि वे ऐसी बातों पर अपनी बेवकूफ़ी दिखाते रहते हैं. आप उनसे और क्या उम्मीद कर सकते हैं. अच्छा दे रहे हैं. लगे रहिए.
भाई दुःखदीन जी
बहुत सही काम मे लगे हैं , लगे रहें। असगर साहब कि इस कहानी को ब्लोगलैंड मे लाने के लिए साधुवाद । लेकिन आपकी प्रोफाइल से आपके बारे मे कुछ पता नही चलता । कुछ अपने बारे मे भी बताइए।
और संजय भाई ये आपके लिए .....
असगर साहब हिंदी के जाने माने साहित्यकार हैं । खैर आपसे क्या बहस करना , आपका साहित्य दर्शन तो आपके लिखे से ही प्रकट है। हमारे यहाँ अवधी मे कहते हैं .... "जानयं ना बूझयं , कटोरा लई के जूझयं" । आपके ऊपर बहुत सही फीट होती है।
छीः
त्रिशूल पर टंगे बच्चे की मां (असगर वजाहत)--
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..........और आप भी इस यथार्थ से इनकार नही कर सकते कि गुजरात मे , " आपके गुजरात" मे मुसलमान मारे गये और ख़ूब मारे गये , आपके अंदर अगर दम है तो उन मौतों को फिर से ज़िंदा करके ले आइए , हम कुछ नही कहेंगे .......
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Story of Civilization (Will Durant)
इतिहास की विश्वस्तर की मान्य पाठ्यपुस्तक है, हर एक इतिहासकार इसके तथ्यों से निर्विवाद सहमत है. पढ लेना, उसके बाद ही दूसरो से हिसाब देने को कहना. पूरे इस्लामिक इतिहास की बात छोङ दें तो भी, और सिर्फ़ भारतीय उपमहाद्वीप की बात लें ................गज़नवी से मोहम्मद गोरी से मलमुक सुलतानों से खल्जी वंश से तुगलक वन्श से आमिर तिमूर .........मेरे दोस्त, खून आज भी हिसाब मांग रहा है. पिछले हज़ारों सालों में हिंदुओं ने कितनी बार तलवार उठाई? कितने इस्लामिक देशों को तलवार के दम पर लूटा? अरे मेरे दोस्त सिर्फ़ इतना तो बताने की ज़हमत उठाओ की हिन्दुओं ने कितने धर्मपरिवर्तन (तलवार से या उसके बिना) कराये??? हिन्दु तो खुद अपनी समस्यायों से त्रस्त थे, जातिवाद, ब्रम्ह्नणवाद, संकीर्णताओं से जूझते हुए हम अत्याचारियों का सामना ही न कर पाये............ऊपर सूचि में लिखे मुस्लिम् शासकों के काल में जितने मासूम बच्चे, महिलायें,गैरसैनिक आदमी मार डाले गये उनके जीवन हमें लौटा दो..........हमे गुजरात की जानें वापस लौटाने मे कोई दिक्कत नहीं है. और अगर नहीं, तो अपनी ज़हरीली ज़ुबान् मत लपलपाओ........मुंह् बंद करो...........ज़बान पर लगाम दिये रहो.
ईस्लाम् का हमपे कर्ज़ है...........करोड़ो बेगुनाहों के खून का.......फ़िक्र न करो.......बहुत ऊंचे सूद के साथ जल्द ही वापसी होगी.(शायद इसी डर के कारण सूद हराम है). हिन्दुओं ने तो एक चींटी भी नहीं मारी इस्लामिक लोगों के मुकाबले! अरे दोस्त, एक मौका हमें भी तो दो! तुम ही तुम कब तक खेलोगे??? देखो दोस्त,तुम अपने और बिरादरों जैसे मुंह तोड़ जवाब न होने की हालत में तलवार तो उठा नहीं पाओगे.............कायरों की तरह गाली और हेट मेल/पोस्ट मत करने लगना.............बुद्दिमानों की तरह सोच-समझकर बढिया तर्क खोजना, फ़िर जवाब देना, कोई जल्दी नहीं है!
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